ये किस्सा आम नहीं,पर आम लोगो का है, जो दर्द सहता है,अमीरों की इस भीड़ में तन्हा-तन्हा सा रहता है |
जिसके सर पर सर्द रातें ढ़लती हैं, घर में पेट खाली और भूख पलती है | जिसे नंगे बदन के बेआबरू होने का ख़ौफ़ नहीं, उसके शिथिल होने की चिंता की चिता जलती है |
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